A random poem I wrote around my thoughts about the political status in India.
Its All Fictional and Nothing is based or related to any Political Party or Person-living or dead.
आज खुशी है मौसम मे,
तो फिर मन मे बेचैनी क्यूँ है
घर मे सब मंगलमय है,
सब है शांत,
तो मोहल्ले मे ये भगदड़ क्यूँ है
कल मिला था मुझे एक फ़क़ीर उस चौराहे पे,
देश बड़ रहा है, दिन अच्छे हैं,
तो ये शहरो मे भुखमरी क्यूँ है |
कुछ साल पहले हुई थी एक चोरी, पकड़ा गया था एक डल,
बदली थी हुक़ूमत, आयी थी बदलाव की एक लहार,
तो आज ये बदलाव की आंधी
यू मद्धम सी क्यूँ है |
क्या सो गया है मेरे अंदर का इन्सान,
या खो गया है वो बेचारा अंजान,
क्या सो गया है मेरे अंदर का इन्सान,
या खो गया है वो बेचारा अंजान,
अपने आपको आवाज़ देता हूँ मैं,
पर जवाब मे ये आज खामोशी क्यूँ है |
आम आदमी हूँ मैं, सब देखता हूँ मैं,
आम आदमी हूँ मैं, सब देखता हूँ मैं,
जेब मेरी होती है खाली हर बरस,
सरकारी ताक़तों से भी झूझ्ता हूँ मैं,
टूटता है ये भरोसा हर 5 सालों में,
खाता हूँ धोके हर बार,
पर आम अदमी कहो या कहलो बन्दर,
आज इस दिल मे ना कोई आपत्ति क्यूँ है |
मुसलमान मैं हूँ, हिन्दू भी हूँ, मैं हूँ सिख और मैं ही ईसाई,
मेरा है ये घर, मेरा ही ये देश,
फिर भी आज समाचार मे
मेरी गिनती को कहते अल्पसंख्यक क्यूँ हूँ |
मेरि नमाज़ क्यूँ है बुरी खुले में,
क्यूँ है मेरि अज़ान एक शोर,
मेरि नमाज़ क्यूँ है बुरी खुले में,
क्यूँ है मेरि अज़ान एक शोर,
कहते हैं तुम खुद्को निरपेक्ष, तुम ही हो सर्वुपर,
तो मेरि पीडी से मेरे वतन को एक खतरा क्यूँ है
अर्रे राजनेताओं, माना मैने अपना ये हाल,
हो गया अल्पसंख्यक भी आज,
अर्रे राजनेताओं, माना मैने अपना ये हाल,
हो गया अल्पसंख्यक भी आज,
पर मेरे अल्पसंख्यक होने ना होने से,
तुम्हारी ये कुर्सी आज हिलती क्यूँ है |
क्यूँ कहते हो की मैं हूँ खतरा,
और क्यूँ मेरा भाई है तुम्हारा अपना,
एक ज़मीन पे पैदा हुए, एक देश मे पले हम,
फिर आज अपने ही देश मे हम तुम्हारे आश्रित क्यूँ है |
अख़बार मे छपी है देश की कामयाबी,
अख़बार मे छपी है देश की कामयाबी,
तो देश मे ये भ्रष्ट बीमारी क्यूँ है |
कागज़ पलटता हूँ जैसे मैं,
एक माँ मरी है,
एक बहन लुटि है,
एक भाई हुआ है गुम,
मरी है एक माँ,
लुटि है एक बहन,
भाई हुआ है गुम,
ऐसे देश को हम फिर कहते यूँ महान क्यूँ हैं |
आज खुशी है मौसम मे,
तो फिर मन मे बेचैनी क्यूँ है ||