रात की चांदनी में
ख़ामोशी के आग़ोश में
तुम्हारी परछाई को ढूंढ़ना अच्छा लगता है
बातों के बीच बातें काटने में
गुस्से में तुम्हे देख मनाने में
तुम्हारी नाराज़गी में खुद को यु ही पा लेना अच्छा लगता है
माफ़ करना शायर कमज़ोर हूँ मैं
थोड़ा अनजान कवी बेवकूफ हूँ मैं
पर तुम्हारी बातों को याद करना सच्चा लगता है
तुम्हारे लिए अलफ़ाज़ चुनना
फिर उनको यू साथ में बुन लेना अच्छा लगता है
काम के बीच और काम निकाल कर
रोकता हु खुद को कई बार
कभी कभी तुम्हे टोक कर
खुद को फिर और टोकता हूँ कई बार
पर यु बेवजह वजह ढूंढ़ना
तुम्हारी छवि हर जगह ढूंढ़ना
खुद को ही खुद से सच्चा लगता है
और फिर कभी रुक कर कभी तुक कर
तुम्हे ये फिर से बता देना अच्छा लगता है
फस्स जाती हो मेरे साथ भीड़ में जब तुम
मुँह बनाती हो जब मेरी ख़राब चाय पीकर जब यूँ तुम
परेशां देखना मुश्किल है तुम्हे यूँ फिर भी
युहीं तुम्हे सताना कभी कभी सच से सच्चा लगता है
तुम्हारे चेहरे पे यूँ ही खफा सी शिकन में
ये हलकी हसीं को पा लेना यूँ पल भर में
मुझे थोड़ा और ही अच्छा लगता है
क्या कहु तुमको जो तुम्हे न पता हो
क्या सोचु ऐसा जो तुम्हे न पता हो
मुझको मेरे से बेहतर जानती हो तुम
ये हकीकत भी तुम्हारा जानना यूँ अजीब सी पहेली लगता है
मेरे दर्द को समझ कर भी अपने दर्द को छुपाना यूँ तुम्हारा भी
अजीब सी पहेली लगता है
पर मुझे तुम्हारा रुला देना
फिर पल में ये ग़म तुम्हारे ही हसीं में भुला देना
खुद के वजूद से सच्चा लगता है
तुमको फिर से ये पता होती हुई सी खबर
अपने ही तरीके से फिर बताने में
जो एहसास ये है तुम्हारा मुझमें मेरा तुम में
यूँ फिर से टूटी सी कविता में बयान कर जाने में
और फिर सोचते हुए की मुस्कुराओगी ज़रूर ये पढ़कर फिर से
ये अधपकी सी शायरी लिख जाने में
मुझे सच में बहोत अच्छा लगता है
माफ़ करना शायर कमज़ोर हूँ मैं
थोड़ा अनजान कवी बेवकूफ हूँ मैं
पर तुम्हारा एहसास यूँ अपने साथ रखना सच्चा लगता है
तुम्हारे लिए अलफ़ाज़ चुनना
फिर उनको यू साथ में बुन लेना अच्छा लगता है