अनजानी सी राहो में अँधेरी सी रातो में
एक तन्हा सी उदासी लेके आया हुँ
अनजानी सी राहो में अँधेरी सी रातो में
एक तन्हा सी उदासी लेके आया हुँ
भूली सी एक याद में
खोयी सी एक आस में
फिर से तेरे सामने वो ही पल लेके आया हुँ
तूने भुला दिया हो ऐसा कोई लम्हा नहीं हुँ मैं
तेरी हरकतों में छिपा सा एक अंदाज़ हुँ
यू तो तेरे लबो पे मुस्कान की आस लेके आया था मैं
पर जो तुझे नहीं पाया उस रिश्ते में वो खोया हुआ सा नाज़ हुँ
वो खोया हुआ सा नाज़ हुँ
नहीं आती मुझे शर्म तुझे यूँ महफ़िल में रुसवा करने में
नहीं आती मुझे शर्म तुझे यूँ महफ़िल में रुसवा करने में
तूने कहा कोई छोड़ी थी कसर
मुझे यादो से फना करने में
फिर भी तेरी परछाई की तरह तेरे ज़हन में खड़ा हूँ
यूँ सोच ले की बस
हया बेहया के परदे को चीरने वाली एक चाहत लेके आया हुँ
कोशिश तो कर मुझेसे कभी रूबरू होने की
जिससे भाग पाए वो महताब नहीं हु मैं
कोशिश तो कर मुझेसे कभी रूबरू होने की
जिससे भाग पाए वो महताब नहीं हु मैं
कोई पराया नहीं हूँ मैं
कोई पराया नहीं हूँ जो दुहाई दूँ प्यार शोहरत और रिश्तो की मैं
यूँ सोच ले की बस
तुझे तुझसे मिलाने की ज़रूरत से निकली चाहत हूँ मैं
मैंने कहा था न..
तूने भुला दिया हो ऐसा कोई लम्हा नहीं हूँ मैं
आ देख मुझे..
तेरे ही ज़मीर की ताबीर हूँ मैं।
तेरे ही ज़मीर की ताबीर हूँ मैं।
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